मुहर्रम या मुहर्रम इस्लामिक धर्म का एक बहुत ही भव्य पर्व है| यह पर्व इस्लामी वर्ष की शुरुआत को दर्शाता है। यह पर्व पूरे विश्व के इस्लामिक धर्म के अनुयाई द्वारा भव्य अंदाज़ में मनाया जाता है। मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है। इस्लामी समुदाय इस महीने को सबसे व्यस्त महीने मानता है। मुहर्रम का त्यौहार वर्ष का प्रारम्भ इसलया है क्योंकि इस्लाम का कैलेंडर चंद्र कैलेंडर है। सुन्नी मुस्लिम समुदाय मुहर्रम के दसवें दिन है, जिसे अशूरा का दिन कहा जाता है। त्यौहार के दौरान, शिया मुसलमान विभिन्न इरादों के साथ विभिन्न रीती रिवाज़ निभाते हैं।
Muharram shayari
सिर-ऐ-हुसैन मिला है !!
यज़ीद को लेकिन शिकस्त यह है !!
की फिर भी झुका हुआ ना मिला !!
गुरूर टूट गया कोई मर्तबा ना मिला, सितम के बाद भी कुछ हासिल जफा ना मिला,
सिर-ऐ-हुसैन मिला है यजीद को लेकिन शिकस्त यह है की फिर भी झुका हुआ ना मिला।
पानी का तलब हो तो एक काम किया कर, कर्बला के नाम पर एक जाम पिया कर,
दी मुझको हुसैन इब्न अली ने ये नसीहत, जालिम हो मुकाबिल तो मेरा नाम लिया कर।
मोहर्रम स्टेटस
खून से चराग-ए-दीन जलाया हुसैन ने, रस्म-ए-वफ़ा को खूब निभाया हुसैन ने,
खुद को तो एक बूँद न मिल सका लेकिन करबला को खून पिलाया हुसैन ने।
एक दिन बड़े गुरूर से कहने लगी ज़मीन, ऐ मेरे नसीब में परचम हुसैन का,
फिर चाँद ने कहा मेरे सीने के दाग देख, होता है आसमान पर भी मातम हुसैन का।
दश्त-ए-बाला को अर्श का जीना बना दिया, जंगल को मुहम्मद का मदीना बना दिया।
हर जर्रे को नजफ का नगीना बना दिया, हुसैन तुमने मरने को जीना बना दिया।
हुसैन शायरी इन हिंदी
आँखों को कोई ख्वाब तो दिखायी दे, ताबीर में इमाम का जलवा तो दिखायी दे,
ए इब्न-ऐ-मुर्तजा सूरज भी एक छोटा सा जरा दिखायी दे।
करीब अल्लाह के आओ तो कोई बात बने, ईमान फिर से जगाओ तो कोई बात बने,
लहू जो बह गया कर्बला में, उनके मकसद को समझा तो कोई बात
जन्नत की आरजू में कहा जा रहे है लोग, जन्नत तो कर्बला में खरीदी हुसैन ने।
जुलूस शायरी
एक दिन बड़े गुरुर से कहने लगी जमीन, है मेरे नसीब में परचम हुसैन का। फिर चाँद ने कहा मेरे सीने के दाग देख, होता है आसमान पर भी मातम हुसैन का।
क्या हक़ अदा करेगा ज़माना हुसैन का, अब तक ज़मीन पे क़र्ज़ है सजदा हुसैन का। झोली फैला कर मांग लो मोमिनो, हर दुआ कबूल करेगा दिल हुसैन का।
अपनी तक़दीर जगाते है तेरे मातम से, खून की राह बिछाते हैं तेरे मातम से। अपने इज़हार-ए-अक़ीदत का सिलसिला ये है, हम नया साल मनाते है तेरे मातम से।
इमाम हुसैन की ग़ज़ल
कर्बला की कहानी में कत्लेआम था लेकिन हौसलों के आगे हर कोई गुलाम था,
खुदा के बन्दे ने शहीद की कुर्बानी दी इसलिए उसका नाम पैगाम बना।
जन्नत में तो जन्नत के हकदार ही जायेंगे,
कसम आल्लाह की अली के खुब्दार जायेंगे,
दर-ए-जन्नत पे खरी जेहरा कहती है,
जन्नत में मेरे लाल के अजादार जायेंगे!!!
एक दिन बड़े गुरूर से कहने लगी ज़मीन,
ऐ मेरे नसीब में परचम हुसैन का,
फिर चाँद ने कहा मेरे सीने के दाग देख,
होता है आसमान पर भी मातम हुसैन का।